दिव्यांग के बाद भी मलाथी कृष्णामूर्ति ने पैरा ओलंपिक में जीत हासिल कर किया भारत का नाम रोशन
जिंदगी के दो पहलू होते है, सुख और दुख, इसलिए लोगों को दोनों ही परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कई लोग ऐसे होते है,जो असफलता का दोष किस्मत को ही देते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं,जिन्होंने लकवाग्रस्त होने के बावजूद भी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी और अपनी काबिलियत के दम पर देश का नाम रोशन किया।
मलाथी कृष्णामूर्ति हॉला का जन्म 6 जुलाई 1958 को बंगलौर में हुआ। उनके पिता एक छोटा सा होटल चलाते थे तथा उनकी माँ घर संभालती थी। जब मलाथी 1 वर्ष की थी, तब उन्हें काफी तेज़ बुखार हुआ और उसकी वजह से उनके पूरे शरीर को लकवा मार गया। उनके पविवार वालों को उस वक़्त कुछ समझ ही नहीं आया कि उनकी बच्ची को अचानक से क्या हो गया। अपनी मासूम सी बच्ची को इस हालत में देखकर पूरे घर में सन्नाटा सा छा गया। लगातार 2 साल तक डॉक्टर्स मलाथी को बिजली के झटके देते रहे, इसके बाद उनके ऊपरी हिस्से में तो इसका प्रभाव पड़ा। परन्तु निचले हिस्से में बदलाव नहीं हो पाया, जिसकी वजह से वो बचपन में ही लकवाग्रस्त हो गई।
मगर मलाथी ने दिव्यांग होने के बाद भी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी और उन्होंने अपनी कमज़ोरी को ही अपना हथियार बना लिया। मलाथी कृष्णमूर्ति ने ठान लिया चाहें कुछ भी हो जाए अब जिंदगी में कुछ बड़ा करना है। इसके बाद मालाथी ने अपनी इस कमज़़ोरी को अपनी ताकत बनाया और र्स्पोट्स को चुना। उनके लिए ये करना आसान नहीं था, लेकिन अपनी हिम्मत और परिवार के सहारे वो जिंदगी में आगे बढ़ती चली गई। उन्होंने रोज़ाना दौड़ना शुरू कर दिया, इस दौरान उन्हें काफी दर्द भी झेलनी पड़ती थी। अपने दर्द को पीछे छोड़ते हुए जब वे पैरा ओलंपिक में उतरी तो उन्होंने 200 मीटर, शॉटपुट, डिसकस और जेवेलिन थ्रो में गोल्ड जीता। होल्ला भारत की इंटरनेशनल पैरा एथलीट हैं,उन्हें अर्जुन और पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा जा चुका हैं।
मलाथी सिंडिकेट बैंक में मैनेजर के तौर पर काम करती हैं, तथा 16 विकलांग बच्चों के लिए मथरु फाउंडेशन चलाती हैं। यह एक चैरिटेबल ट्रस्ट है जिसे उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलके खोला था। मलाथी सिंडिकेट की कहानी हमारे लिए बहुत प्रेरणादायक है, क्योंकि उनके सामने बार-बार चुनौतियां खड़ी होती रही लेकिन उन्होंने हर बार सभी चुनौतियों को हरा दिया।
अब तक उन्हें करीब 300 मेडल मिल चुके हैं जिसमें अर्जुन और पद्मश्री अवार्ड भी शामिल है। उन्होंने 'साउथ कोरिया, बार्सिलोना, एथेंस और बीजिंग में हुए पैराओलंपिक', 'बीजिंग, बैंकॉक, साउथ कोरिया, कुआला लंपर में हुए एशियन गेम्स' और 'डेनमार्क और ऑस्ट्रेलिया में हुए वर्ल्ड मास्टर्स', 'ओपेन चैंपियनशिप' और 'कॉमनवेल्थ गेम्स' में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।
मलाथी सिंडिकेट बैंक में मैनेजर के तौर पर काम करती हैं। अपनी परेशानियों से जूझती फिर भी इरादों से मजबूत ये महिला अपने दोस्तों की मदद से 'माथरु फाउंडेशन' भी चलाती है जो अभी 16 शारीरिक रुप से अक्षम बच्चों को आश्रय देता है।
ये भी इनकी एक उपलब्धि ही कही जाएगी कि इनकी याद्दाश्त भी बहुत अच्छी है ये अपने 6000 बैंक कस्टमर्स का अकाउंट नंबर याद रख सकती हैं।
8 जुलाई 2009 को इन्होंने अपनी पहली जीवनी 'अ डिफरेंट स्पीरिट' लोगों के सामने प्रस्तुत की। जिसमें उन्होंने अपने जीवन के सारे पहलुओं को लोगों के सामने खोलकर रखा है।